सौर ऊर्जा से फैल रही कंप्यूटर शिक्षा की रोशनी

24/03/2014 12:52

कंप्यूटर चालू करना मुश्किल काम नहीं है, बशर्ते आपके पास बिजली उपलब्ध हो.

इसी आधारभूत कमी से युगांडा के ज़्यादातर ग्रामीण इलाके जूझ रहे हैं जहां तक न सीधी बिजली पहुंचती है और न ही ऊर्जा का कोई और विश्वसनीय स्रोत है. इसके चलते इन स्कूलों के बच्चे आधुनिक तकनीक के बारे में सीखने से वंचित रह जाते हैं.

तो एक ओर जहां शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक पर गंभीर चर्चाएं हो रही हैं और वैश्विक दौड़ में बने रहने की बात हो रही है, वहीं उप-सहारा अफ़्रीका में बच्चे इसके प्राथमिक ढांचे के अंदर भी नहीं आ पाते.

लेकिन युगांडा के ग्रामीण स्कूलों में चलाई जा रही एक परियोजना सीधे समस्या के समाधान की कोशिश कर रही है.

इस परियोजना के तहत विषुवत रेखा पर उपलब्ध प्रचुर मात्रा में सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल कर छोटे सौर पैनलों के ज़रिए मोबाइल क्लासरूमों को बिजली उपलब्ध करवाई जा रही है.

नौकरी की गुंजाइश

शिक्षा के लिए काम करने वाली एक धर्मार्थ संस्था, मेएनडेलेओ फ़ाउंडेशन, इस परियोजना को चला रही है.

एक मजबूत जीप धूल भरे, टेढ़े-मेढ़े, गड्ढों से होती हुई दूरदराज स्थित स्कूलों तक पहुंचती है, इसकी छत पर सौर पैनल रगे होते हैं.

कच्चे रास्ते से होकर जीप जब स्कूल तक पहुंचती है तो अचानक एक क्लासरूम उभर आता है. इसमें टेंट हैं, कुर्सियां और डेस्क हैं और एक क्लास लायक पर्याप्त लैपटॉप हैं. इसे सोलर पैनल से ऊर्जा मिलती है जो विद्यार्थियो को कई घंटे तक पढ़ाने के लिए पर्याप्त होती है.

फ़ाउंडेशन के पास दो जीप हैं जो हफ़्ते में बारी-बारी से पांच स्कूलों में जाती हैं और 2,000 विद्यार्थियों तक कंप्यूटर पहुंचाती हैं.

मध्य युगांडा में मुकोनो के पास युगांडा प्राइमरी स्कूल के केट्यूम चर्च के पास जब यह जीप पहुंचती है तो यह बाहरी दुनिया के दूत सरीखी लगती है.

ऐसा नहीं है कि शिक्षक या विद्यार्थियों को तकनीक के बारे में कुछ पता नहीं है लेकिन इस परियोजना के बगैर वह कंप्यूटर को छू नहीं सकते.

जैसे ही लैपटॉप को सौर-चालित बैट्रियों से जोड़ा जाता है, बच्चे कीबोर्ड पर हाथ चलाने लगते हैं और गेम्स सीखने लगते हैं जैसे कि दुनिया की किसी भी और जगह में होता है.

बस फ़र्क यह है कि यह एक खुला हुआ क्लासरूम है और एक गर्म पत्थर पर बैठा हरा गिरगिट उन्हें काम करते हुए देख रहा है.

इस परियोजना के एक प्रशिक्षक, जॉन वालुसिम्बी, कहते हैं कि ग्रामीण युवाओं के लिए भविष्य में नौकरी की गुंजाइश के लिए यह कंप्यूटर शिक्षा ज़रूरी है.

वह कहते हैं, "अगर बच्चों के पास यह कौशल होगा तो वह पीछे नहीं छूटेंगे."

दुनिया से प्रतियोगिता

हालांकि युगांडा में लैपटॉप, टैबलेट कंप्यूटर और इंटरनेट महंगे हैं इसलिए वह कहते हैं कि मोबाइल फ़ोन्स की तरह वह भी सस्ते हो सकते हैं.

और जब ऐसा होगा और इन बच्चों ने अगर कंप्यूटर को छुआ तक नहीं होगा तो इन्हें काफ़ी नुक्सान होगा.

मेएनडेलेओ फ़ाउंडेशन की सह संस्थापक एशिया कामुकामा कहती हैं कि इन बच्चों को दुनिया भर के लोगों के साथ प्रतियोगिता करनी होगी.

स्कूल की एक शिक्षक जुडिथ नन्क्या कहते हैं, "इस समाज में यह हुनर बहुत दुर्लभ है."

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सस्ती ऊर्जा की पहुंच युगांडा में बहुत कम स्कूलों तक क्यों है. सौर पैनलों को स्थाई रूप से लगाने और दुरुस्त रखना भी कुछ स्कूलों के लिए बहुत महंगा पड़ता है.

और जब इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड से कनेक्शन लेने की बात हो तो यह और भी अविश्वसनीय हो जाता है.

युगांडा में साल भर सूरज की रोशनी रहती है और बादलों वाले दिन में भी सौर ऊर्जा मिलती है. इसलिए अब तक यही ऐसी चीज़ है जो कि विश्वसनीय है, आत्म-निर्भर है और काम करती है.

यह एक हरा-भरा, शांत इलाका है और विक्टोरिया झील से कुछ ही दूरी पर स्थित है. लेकिन इनमें से बहुत से युवाओं को काम की तलाश में गांव छोड़कर शहरों की तरफ़ जाना होगा.

मेएनडेलेओ फ़ाउंडेशन की सह संस्थापक एशिया कामुकामा कहती हैं कि ये बच्चे स्कूल छोड़कर काम करना शुरू कर देते हैं और और उन्हें "दुनिया भर के लोगों के साथ प्रतियोगिता" करनी होगी.

कामुकावा पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कारों डब्ल्यूआईएसई (वर्ल्ड इनोवेशन समिट फॉर एजुकेशन) शिखर सम्मेलन के फ़ाइनल में पहुंची थीं.

वह कहती हैं, "इन मशीनों से पहले से परिचित हुए बिना वह घबराए हुए बोते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि शुरू कहां से करना है. हम अगली पीढ़ी को यह सिखा रहे हैं कि कंप्यूटर का इस्तेमाल कैसे करना है."

वह कहती हैं कि यह बात सिर्फ़ स्कूलों के बारे में नहीं है. तकनीक और इंटरनेट स्थानीय समुदाय के लिए स्वास्थ्य और शैक्षिक सेवा को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

युवाओं की भीड़

युगांडा की आबादी 2050 तक चार गुना बढ़ सकती है जिसमें युवाओं की संख्या अधिक होगी.

फ़ाउंडेशन किसानों को उनकी स्थानीय भाषा में ऑनलाइन कृषि संबंधी जानकारी उपलब्ध करवाने पर भी काम कर रहा है. उसकी कोशिश सूचना प्रदान करने और कुशलता बढ़ाने की है.

इस अभियान को एक गैर-लाभकारी संगठन, इलेक्ट्रॉनिक इंफ़ॉर्मेशन फ़ॉर लाइब्रेरीज़, भी सहायता कर रहा है. यह संगठन विकासशील देशों में डिजिटल सूचनाएं उपलब्ध करवाता है.

युगांडा के सामने आश्चर्यजनक रफ़्तार से बढ़ती जनसंख्या को हुनरमंद बनाने की बड़ी भारी चुनौती है.

साल 1962 में जब देख को आज़ादी मिली जब इसकी जनसंख्या 80 लाख थी. 2012 में यह चार गुने से ज़्यादा बढ़कर 3.40 करोड़ हो गई थी और जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान रफ़्तार को देखते हुए लगता है कि यह 2050 में चार गुना बढ़कर 13 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

इतने सारे बच्चे करेंगे क्या? आज चार में से सिर्फ़ एक को ही सेकेंडरी स्कूल में जगह मिल पाती है.

देश की राजधानी, कंपाला, में पहले ही बड़ी संख्या में कामचलाऊ झोपड़ियों में युवा परिवारों भीड़ जमा हो गई है जो जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. देश में अब भी 18 साल से कम उम्र के युवाओं की संख्या वयस्कों से ज़्यादा है.

और अगर दस लाख और लोग बिना शिक्षा या हुनर के इस भीड़ में शामिल हो जाते हैं तो यह राजनीतिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकते हैं.

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